योग सबके लिए; नियम-सिद्धांतों का ज्ञान होना जरूरी |
योग सही तरीके से जीवन जीने की युक्ति है और इसे सभी के द्वारा अपने दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए। यह हमारे जीवन से संबधित भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक आदि सभी पहलुओं पर समान रुप से कार्य करता है। योग का अर्थ एकता या बांधना। यह योग या एकता या मिलन यम-नियम, आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बंध, षट्कर्म और ध्यान के अभ्यास से होती है।
योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘युज्’ से हुई है जिसका अर्थ है जोड़ना। योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। पहला है-जोड़ और दूसरा है समाधि। जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुंचना असंभव होगा। योग का अर्थ परमात्मा से मिलन है।
योग स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीने की कला है। योग के माध्यम से शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रुप से स्वस्थ किया जा सकता है। तीनों के स्वस्थ रहने से आत्मा स्वतः ही स्वयं को स्वस्थ महसूस करती है। आरोग्य, दीर्घायु, सिद्धि और समाधि के लिए योग किया जाता रहा है। लेकिन योग का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए योगाभ्यास करते समय योग के अभ्यासी को नीचे दिए गए दिशा निर्देशों एवं सिद्धांतों का पालन अवश्य करना चाहिए-
योग अभ्यास से पूर्व जानें
- उचित समय (Right time for yoga practice)
चित योग का अभ्यास प्रातः सायं दोनों समय कर सकते हैं। यदि दोनों समय नहीं कर सकते तो प्रातः काल का समय अति उत्तम है। प्रातः काल मन शांत रहता है। योग अभ्यास शौच आदि से निवृत्त होकर खाली पेट तथा दोपहर के भोजन के लगभग 4 घण्टे बाद शाम के समय कर सकते हैं। कब्ज रहती हो तो प्रातः काल तांबे के बर्तन में रखे हुए पानी को पीना चाहिये। फिर 10-15 मिनट टहलकर शौच जायें तथा रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गर्म पानी या दूध के साथ सेवन करें।
- स्थान (Right Place & Asana for Yoga Practice)
स्वच्छ, समतल, शोरगुलरहित एकांत स्थान योग अभ्यास के लिए उत्तम है। यदि वृक्षों के हरियाली के समीप बाग, तालाब या नदी का किनारा हो तो और भी उत्तम है। खुले वातावरण एवं वृक्षों के नजदीक आक्सीजन की पर्याप्त मात्रा मिलती है। जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है। यदि घर में आसन- प्राणायाम करें तो घी का दीपक या गूगल आदि जलाकर उस स्थान को सुगंधित करना चाहिए तथा जमीन पर बिछाने के लिए मुलायम दरी या कंबल का प्रयोग करना उचित होता है। खुली जमीन पर अभ्यास करने से बचें।
- वेशभूषा (Dress for Yoga Practice)
आसन करते समय शरीर पर वस्त्र कम, ढ़ीले (बहुत ढ़ीले नहीं) अथवा सुविधाजनक होने चाहिए ताकि हवा पास हो सके, आप आसानी से जमीन पर बैठ सकें और सभी जरूरी स्ट्रेच कर सकें। कपड़े जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए चुना जाना चाहिए। रंगों से कोई फर्क नहीं पड़ता, कपड़ा सूती हो, जो कि पसीने को आराम से सोख लेता है, यह आरामदायक और ऊर्जा के मुक्त प्रवाह की अनुमति भी देता है।
- मात्रा अथवा अवधि (Session of Yoga)
अभ्यास अपने सामर्थ्यशक्ति (शारीरिक एवं मानसिक क्षमता) के अनुसार सहजता एवं सजगता के साथ होना चाहिए, किसी प्रकार की जोर-जबरदस्ती अथवा झटका प्रदान न करें। आसनों का पूर्ण अभ्यास 1 घंटे में, मध्यम अभ्यास आधा घंटे में, तथा संक्षिप्त अभ्यास 15 मिनट में होता है। आधा घंटा तो प्रत्येक व्यक्ति को योगासन करना ही चाहिए।
- उम्र (Age)
वृद्ध एवं दुर्बल व्यक्तियों को आसन एवं प्राणायाम अल्प मात्रा में करना चाहिए। 9 वर्ष से अधिक आयु के बालक सभी योगिक अभ्यास कर सकते हैं।
- श्वास- प्रश्वास संबंधी नियम (Breathing during Yoga)
योग अभ्यासों को आरामदायक स्थिति में शरीर एवं श्वास-प्रश्वास की सजगता के साथ धीरे-धीरे करना चाहिए। योगासन करते समय सामान्य नियम है। कि आगे की ओर झुकते समय श्वास बाहर निकालते हैं, तथा पीछे की ओर झुकते समय श्वास अंदर भरकर रखते हैं। योग अभ्यास के समय श्वास-प्रश्वास (लेना वा छोड़ना) की प्रक्रिया सदैव नासिका छिद्रों से ही होनी चाहिए, जब तक कि आपको अन्य विधि से श्वास-प्रश्वास लेने के लिए कहा न जाए।
- द्रष्टि (Eyes Open or Closed during Yoga)
आंखें बंद करके योगासन करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है। जिससे मानसिक तनाव एवं चंचलता दूर होती है। सामान्यता आसन एवं प्राणायाम का अभ्यास आंखें खोल कर भी कर सकते हैं।
- पसीना आने पर (Sweet during Yoga)
योगासन के अभ्यास के दौरान पसीना आ जाए तो किसी साफ तौलिया से पोछ लेना चाहिए। इससे चुस्ती फुर्ती आ जाती है। त्वचा स्वस्थ बनी रहती है और रोगाणु त्वचा के रास्ते शरीर में प्रवेश नहीं कर पाते। योग आसन का अभ्यास यथासंभव स्नान आदि से निवृत होकर करना चाहिए अथवा अभ्यास के 15-20 मिनट बाद भी शरीर का तापमान सामान्य होने पर स्नान कर सकते हैं।
- शरीर का तापमान (Body Temperature)
शरीर का तापमान अधिक उष्ण होने पर या ज्वर होने की स्थिति में योगाभ्यास करने से तापमान बढ़ जाए तो चंद्र स्वर यानी बाई नासिका से श्वास अंदर खींचकर को रखकर सूर्य स्वर यानी दाईं नासिका से रेचक श्वास बाहर निकालना करने की विधि बार- बार करके तापमान सामान्य कर लेना चाहिए।
- विश्राम स्थितियाँ (Relaxation Postions)
आसन करते समय जब थकान हो तब विश्राम करना चाहिए अथवा हर अभ्यास के बाद एक मिनट का विश्राम अवश्य करें। अभ्यास के अंत में शवासन 8 से 10 मिनट अवश्य करें ताकि अंग प्रत्यंग शिथिल हो जाए।
- आसनों के प्रकार (Types of Yogasanas)
बैठकर: पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, गोमुखासन, पश्चिमोत्तानासन, वक्रासन, अर्द्धमत्स्येन्द्रासन आदि।
पीठ बल लेटकर: अर्द्धहलासन, हलासन, सर्वांगासन, पवनमुक्तासन, सेतुबन्ध, नौकासन, शवासन आदि।
पेट के बल लेटकर: मकरासन, धनुरासन, भुजङ्गासन, शलभासन, विपरीत नौकासन आदि।
खड़े होकर: ताड़ासन, वृक्षासन, गरुड़ासन, अर्द्धचक्रासन, कटि चक्रासन, पादहस्तासन आदि।
अन्य: शीर्षासन, मयूरासन, सूर्य नमस्कार आदि।
विशेष: लेटी अवस्था में किये गए आसनों के बाद जब भी उठा जाय, बाई करवट की ओर झुकते हुए उठना चाहिए।
- अवस्था एवं सावधानियाँ (Precautions)
सभी अवस्थाओं में आसन व प्राणायाम किये जा सकते हैं। योग स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करता है तथा रोगी व्यक्ति को स्वस्थ बनाने में मदद करता है। परंतु फिर भी कुछ ऐसे अभ्यास हैं, जिनको रोगी व्यक्ति को नहीं करना चाहिए जैसे-
जिनका कान बहता हो, नेत्रों में लाली हो, स्नायु एवं हृदय दुर्बल हो, उनको शीर्षासन नहीं करना चाहिए।
- ह्रदय दुर्बल वाले को अधिक कठिन आसन जैसे पूर्ण शलभासन, धनुरासन आदि नहीं करना चाहिए।
- अंडवृद्धि वालों को भी यह आसन नहीं करनी चाहिए। जिनसे नाभि के नीचे वाले हिस्से पर अधिक दबाव पड़े।
- उच्च रक्तचाप वाले रोगियों को सिर के बल किए जाने वाले शीर्षासन आदि आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- महिलाओं को ऋतु काल में चार-पांच दिन आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- जिनको कमर और गर्दन में दर्द रहता हो वह आगे झुकने वाले आसन न करें।
- जिन व्यक्तियों को कभी अस्थि भंग हुआ है। जैसे जिनकी हड्डियां कभी टूटी हुई है। वह कठिन आसनों का अभ्यास न करें। अन्यथा हानि हो सकती है।
- गर्भवती महिलाएं कठिन अभ्यास न करें। वह केवल धीरे-धीरे दीर्घ स्वसन प्रणव नाद एवं पवित्र मंत्रों का ध्यान करें।
- यदि पुराने रोग, पीड़ा या कोई सर्जरी एवं हदय संबंधी समस्याओं तथा गर्भावस्था एवं मासिक धर्म के समय-ऐसी स्थिति में योग अभ्यास शुरु करने के पूर्व चिकित्सक अथवा योग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।
याद रखिये (Keep in Mind)
योग अभ्यास का पूर्ण लाभ लेने के लिए यम-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह तथा नियम-शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्रणिधान का पालन करना चाहिए।
योग अभ्यास का पूर्ण लाभ लेने के लिए साधक का आहार सात्त्विक एवं शाकाहार होना चाहिए। बासी, गरिष्ठ, मिर्च-मसाले युक्त भोजन एवं जंक़ व फ़ास्ट फ़ूड का त्याग कर देना चाहिए।
दोपहर का भोजन भूख से एक रोटी कम और शाम को अल्पाहार लेना चाहिए।
अन्तिम सलाह (Final Advice)
योगिक षट्कर्म का अभ्यास किसी योग प्रशिक्षक से सीखकर ही करना चाहिए। कोई वीडियो या पुस्तक आदि में पढ़कर किया गया योग अभ्यास शरीर को भारी नुकशान पहुँचा सकता है।
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