सूर्य नमस्कार |
सूर्य नमस्कार की मान्यता किसी आसन या व्यायाम के अंन्तर्गत नहीं है बल्कि अण्डज, पिण्डज, जंगम तथा स्थावर रुपी सृष्टि के सृजन, पालन तथा परिवर्तन की प्रक्रिया को संचालित करने वाले एवं सविता, सूर्य तथा मित्र आदि वैदिक नामों से सम्बोधित किये जाने वाले देवता भगवान सूर्यदेव को कई शारीरिक मुद्राओं में नमन करने की क्रियाएँ हैं। जिस प्रकार मंत्रों के पूर्व में प्राय: प्रणव (ॐ) को जोड़कर मंत्रों की रचना की गई है, उसी प्रकार आसनों को करने के पूर्व सूर्य नमस्कार की क्रियाओं को करना यथेष्ट ही नहीं अपितु अत्यन्त श्रेयस्कर भी होता है।
सूर्य नमस्कार करने की विधि
सूर्य नमस्कार 12 शरीरिक मुद्राओं में सम्पन्न होता है, जिसकी मंत्र सहित करने की विधि यहाँ बताया जा रहा है।
प्रथम क्रिया/स्थिति
प्रणाम आसन
मंत्र-ॐ मित्राय नमः।
दूसरी क्रिया/स्थिति
हस्तोत्तानासन
गहरी सांस लेकर हाथों को धीरे-धीरे ऊपर ले जायें। हथेलियाँ सामने हों। दोनों बाहों को सिर के बीच ले जाते हुए कमर को यथा सम्भव पीछे की ओर मोड़ें और अपनी दृष्टि आसमान की ओर ले जायें।मंत्र-ॐ रवये नमः।
तीसरी क्रिया/स्थिति
पादहस्तासन
सांस को धीरे-धीरे निकालते हुए तथा सिर को पूर्ववत बाहों के बीच में रखते हुए सामने की ओर झुककर घुटनों को बिना मोड़े दोनों हाथों को भूमि पर रखने का धीरे-धीरे प्रयास करें।
मंत्र-ॐ सूर्याय नमः।
चौथी क्रिया/स्थिति
अश्व संचालनासन
मंत्र-ॐ भानवे नमः।
पांचवी क्रिया/स्थिति
पर्वतासन
छठवीं क्रिया/स्थिति
साष्टांगासन
मंत्र-ॐ पूषण्ये नमः।
सातवीं क्रिया/स्थिति
भुजङ्गासन
मंत्र-ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
आठवीं क्रिया/स्थिति
पर्वतासन
मंत्र-ॐ मरीच्यै नमः।
नवमी क्रिया/स्थिति
अश्व संचालनासन
मंत्र-ॐ आदित्याय नमः।
दसवीं क्रिया/स्थिति
पाद हस्तासन
मंत्र-ॐ सवित्रे नमः।
ग्यारहवीं क्रिया/स्थिति
हस्तोत्तानासन
मंत्र-ॐ अर्काय नमः।
बाहरवीं क्रिया/स्थिति
प्रणामासन
मंत्र-ॐ भास्कराय नमः।
समस्थिति (सावधान पोजीशन )
अंत में हाथों को नीचे लाकर उन्हें अगल-बगल जांघों से सटाकर खड़े हो जायें। समस्थिति में आ जायें।
ॐ श्री सवितृ-सूर्यनारायणाय नम: