ब्रह्मचर्य ही जीवन है। |
ब्रह्मचर्य ही जीवन है। अनमोल सिद्धियों का प्रदाता है ब्रह्मचर्य। ब्रह्मचर्य सम्पूर्ण मानव-जीवन का मुकुट है। ब्रह्मचर्य-व्रत की महत्ता को जीवन में प्रयोग करने वाले दिव्य पुरुषों के पवित्र पदचिह्नों पर चलकर अर्थात् ब्रह्मचर्य से लाभान्वित होकर हमें अपने अनमोल जीवन के महान् उद्देश्यों की प्राप्ति में लगना चाहिये।
ब्रह्मचर्य क्या है? (What is Brahmacharya)
- याज्ञवल्क्यसंहिता में आया है-‘कर्मणा मनसा वाचा सर्वावस्थासु सर्वथा। सर्वत्र मैथुनत्यागो ब्रह्मचर्यं प्रचक्षते।’ अर्थात जिस अवस्था में मन, वचन और कर्म-तीनों के द्वारा सदैव मैथुन का त्याग हो, उसे ‘ब्रह्मचर्य’ कहते हैं।
- महाभारत के रचयिता महर्षि व्यासजी ने कहा है- ‘ब्रह्मचर्येण गुप्तेन्द्रियस्योपस्थस्य संयमः।‘ विषयेन्द्रिय द्वारा प्राप्त होने वाले सुखका संयमपूर्वक त्याग करना ब्रह्मचर्य है। देवताओं को देवत्व भी इसी ब्रह्मचर्य के द्वारा प्राप्त हुआ है।
- अथर्ववेद में वर्णित है-‘ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत। इन्द्रो ह ब्रह्मचर्येण देवेभ्यः स्वराभरत्।।’ अर्थात ब्रह्मचर्यरूपी तप से देवों ने मृत्यु को जीत लिया है। देवराज इन्द्र ने भी ब्रह्मचर्य से ही देवताओं से अधिक सुख तथा उच्च पदको प्राप्त किया है।
- ऐसे तो तपस्वी लोग कई प्रकार के तप करते हैं, परंतु ब्रह्मचर्य के विषय में भगवान् शङ्कर कहते हैं- ‘न तपस्तप इत्याहुर्ब्रह्मचर्यं तपोत्तमम् । ऊर्ध्वरेता भवेद्यस्तु स देवो न तु मानुषः।।’ अर्थात् ब्रह्मचर्य ही उत्कृष्ट तप है। इससे बढ़कर तपश्चर्या तीनों लोकों में दूसरी नहीं हो सकती। ऊर्ध्वरेता पुरुष इस लोक में मनुष्य रूप में प्रत्यक्ष देवता ही है।
- वैद्यशास्त्र में इसको परम बल कहा गया है-‘ब्रह्मचर्य परं बलम्।‘ अर्थात् ब्रह्मचर्य परम बल है।
- पातञ्जल योगदर्शन में बताया गया है -ब्रह्मचर्य की दृढ़ स्थिति हो जाने पर सामर्थ्य का लाभ होता है।
शरीर के बल-बुद्धि की सुरक्षा के लिये वीर्यरक्षा जरूरी
अब प्रश्न उठता है कि शरीर में वीर्य कैसे बनता है। भोजनसे वीर्य बनने की प्रक्रिया बड़ी विचित्र है। श्रीसुश्रुताचार्यजी ने सुश्रुतसंहिता में लिखा है- ‘रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते। मेदसोऽस्थि ततो मज्जा मज्ज्ञः शुक्रं तु जायते।।’ अर्थात जो भोजन पचता है, उसका पहले रस बनता है। पाँच दिनों तक उसका पाचन होकर रक्त बनता है। पाँच दिन के बाद रक्त से मांस उसमें से पाँच-पाँच दिन के अन्तर से मेद, मेद से हड्डी, हड्डी से मज्जा और मज्जा से अन्त में वीर्य बनता है। स्त्री में जो धातु बनती है उसे ‘रज’ कहते हैं। वीर्य शरीर की बहुत मूल्यवान् धातु है, जीवनी शक्ति है। इसलिये शरीर के बल-बुद्धि की सुरक्षा के लिये वीर्यरक्षण बहुत आवश्यक है।
ब्रह्मचर्य साधना का फल है आत्मज्ञान, आत्मसाक्षात्कार
पातञ्जल योगदर्शन के साधनपाद (सूत्र-38) में ब्रह्मचर्य की महत्ता इन शब्दों में बतायी गयी है- ‘ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठायां वीर्यलाभः।’ ब्रह्मचर्य की दृढ़ स्थिति हो जाने पर सामर्थ्य का लाभ होता है। शास्त्रकारोंने लिखा है-‘आयुस्तेजो बलं वीर्यं प्रज्ञा श्रीश्चमहद्यशः। पुण्यं च प्रीतिमत्वं च हन्यतेऽब्रह्मचर्यया।।’ अर्थात् आयु, तेज, बल, वीर्य, बुद्धि, लक्ष्मी, कीर्ति, यश तथा पुण्य और प्रीति -ये सब ब्रह्मचर्य का पालन न करने से नष्ट हो जाते हैं । ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ व्रत, श्रेष्ठ तप तथा श्रेष्ठ साधना है और इस साधना का फल है आत्मज्ञान, आत्मसाक्षात्कार । इस फल प्राप्ति के साथ ही ब्रह्मचर्यव्रत का पूर्ण अर्थ प्रकट होता है।
ब्रह्मचर्य एक प्रकार का तप है। सच्चरित्रता का मुख्य साधन ब्रह्मचर्य है। बस, इसी एक ब्रह्मचर्य के भीतर-सत्य, शौच, संतोष, क्षमा, दया, मैत्री, करुणा और आध्यात्म-चिन्तन सभी समायें हैं। ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करने से मेधा-शक्ति, दीर्घ-जीवन, उत्साह, उत्तम-गति, अपूर्व-सुख, मस्तिष्क में अच्छे-अच्छे विचार प्रवाहित होते हैं।
याद रखें (Keep in Mind):
ब्रह्मचर्य के बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता। रोग से मुक्त होने के लिए, स्वास्थ्य-लाभ के लिए, बल-बुद्धि विकास के लिए तथा योगाभ्यास के लिए तो ब्रह्मचर्य की बड़ी भारी आवश्यकता है। उत्तम सन्तान की प्राप्ति, स्वर्ग की प्राप्ति, सिद्धियों की प्राप्ति, अन्त:करण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति-ब्रह्मचर्य से सब कुछ सम्भव है और ब्रह्मचर्य के बिना कुछ संभव नहीं। सांख्ययोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, राजयोग, हठयोग-सभी साधनों में ब्रह्मचर्य की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष (Conclusion):
ब्रह्मचर्य उत्थान का मार्ग है। ब्रह्मचर्य ही जीवन है। ब्रह्मचर्य के प्रभाव से ही बड़े-बड़े ब्रह्मनिष्ठ ऋषिगण, योद्धा, योगी, धीर, ऐश्वर्यवान् और धर्मनिष्ठ हो गये, जिनके पवित्र नाम आज भी स्मरणीय हैं; जैसे-‘भीष्म पितामह’। अत: लोक-परलोक में अपना हित चाहने वाले को बड़ी सावधानी एवं तत्परता के साथ वीर्य-रक्षा के लिए चेष्टा करनी चाहिए।