एक प्राकृतिक ई.एन.टी. केयर

 

नेति क्रिया :एक प्राकृतिक ई.एन.टी. केयर 

जल नेति क्रिया 


अनुक्रमणिका 
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ने(cap)ति क्रिया एक प्रकार का नाक की सफाई का योगिक व्यायाम है। यह योगिक षटक्रिया या षट्कर्म अर्थात शुद्धिकरण की छह क्रियाओं में से एक है, जिसका हठयोग प्रदीपिका में वर्णन  किया गया है। नेति क्रिया दो प्रकार की होती है -1) जल नेति  और 2) सूत्रनेति। इस लेख में हम जलनेति के बारे में विशेष जानकारी दे रहे हैं –

जलनेति क्रिया  विधि :

जलनेति क्रिया (Jala Neti Kriya) के अभ्यास के लिए नाक में पानी प्रविष्ट कराने के लिए एक विशेष आकार के पात्र या फिर नालीदार लोटे का प्रयोग किया जाता है, जिसे नेति पात्र (Neti Pot) कहा जाता है। इस पात्र को अच्छी प्रकार धोने के बाद इसमें थोड़ा नमक (Salt) मिला हुआ हल्का गर्म जल भर लें। इसके बाद खड़े होकर या फिर बैठकर गर्दन को आगे की ओर किसी दिशा में झुकाएं। अब नासिका का जो स्वर तेज गति से चल रहा हो, उसमें जल से भरे लोटे की नली को बहुत सहजतापूर्वक सही से लगाएं। हल्का सा मुख खोलकर श्वास-प्रश्वास (Breathing) की क्रिया मुँह से करते रहें। ऐसा करने से लोटे में उपस्थित जल स्वत: ही एक नासिका छिद्र से प्रवेश कर दूसरी नासिका छिद्र से आने लगता है। यह अभ्यास ही जलनेति कहा जाता है। इस क्रिया को प्रतिदिन सुबह खाली पेट किया जा सकता है। देखने और करने में इस सरल योगिक क्रिया के लाभ बहुत अधिक हैं। सर्दी-जुकाम, एलर्जी, सायनस, लगातार सिरदर्द, माइग्रेन, तनाव, आँख, कान, गले संबन्धी विकारों आदि  में इस क्रिया के अभ्यास से बड़ा लाभ मिलता  है। वर्तमान समय में इस क्रिया का बहुत अधिक महत्व है।

जलनेति से रोगों में लाभ (Benefits of Jala Neti)

  1. मस्तिष्क की ओर से एक प्रकार का विषैला रस नीचे की ओर बहता है। यह रस कान में आये तो कान के रोग होते हैं, आदमी बहरा हो जाता है। यह रस आँखों की तरफ जाये तो आँखों का तेज कम हो जाता है, चश्मे की जरूरत पड़ती है तथा अन्य रोग होते हैं। यह रस गले की ओर जाये तो गले के रोग होते हैं। नियमपूर्वक जलनेति करने से यह विषैला पदार्थ बाहर निकल जाता है। आँखों की रोशनी बढ़ती है। चश्मे की जरूरत नहीं पड़ती। चश्मा हो भी तो धीरे-धीरे नम्बर कम होते-होते छूट जाता भी जाता है। श्वासोच्छोवास का मार्ग साफ हो जाता है। मस्तिष्क में ताजगी रहती है। जुकाम-सर्दी होने के अवसर कम हो जाते हैं। जलनेति की क्रिया करने से दमा, टी.बी., खाँसी, नकसीर, बहरापन आदि छोटी-मोटी सैकड़ों बीमीरियाँ दूर होती हैं। जलनेति करने वाले को बहुत लाभ होते हैं। चित्त में प्रसन्नता बनी रहती है।
  2. इस क्रिया से नाक व गले की गंदगी साफ हो जाती है तथा यह गले व नाक से संबन्धी रोगों को खत्म करता है। इससे सर्दी, खांसी, जुकाम, नजला, सिर दर्द आदि रोग दूर होते हैं। यह आंखों की बीमारी, कान का बहना, कम सुनना आदि कान के सभी रोग तथा पागलपन के लिए लाभकारी है। इससे अनिद्रा, अतिनिद्रा, बालों का पकना तथा बालों का झड़ना आदि रोग दूर होते हैं।
  3. इससे मस्तिष्क शांत होता है और तनाव मुक्त रहता है, जिससे मस्तिष्क जागृत होकर बुद्धि व विवेक को विकसित करता है। यह सुषुम्ना नाड़ी को जागृत करता है। वायु के मुक्त प्रवाह में आ रही बाधाएं दूर करने से शरीर की सभी कोशाओं पर व्यापक प्रभाव डालता है जिसके कारण मनो-आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

जलनेति का वैज्ञानिक पक्ष (Science behind Jala Neti)

  1. जलनेति में कुछ अधिक नमकीन जल का प्रयोग करने से नाक के अंदर खुजली होती है जिसके कारण झिल्ली में रक्तप्रवाह बढ़ता है तथा ग्रंथीय कोशाओं का स्राव भी बढ़ता है, जिससे ग्रंथियों के द्वार साफ होते हैं। नेति के कारण मात्र नासा-गुहा को ही लाभ नहीं होता बल्कि नेत्रों एवं विभिन्न साइनसों को भी लाभ मिलता है।
  2. मेडिक्सजोन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक जलनेति का सबसे बड़ा फायदा यही है कि इसे रोजाना करने से नाक साफ रहती है. इसकी मदद से नाक के बलगम के साथ-साथ बैक्टीरिया बाहर निकल जाते हैं, जिससे कई समस्याओं से छुटकारा मिलता है।

जलनेति की सावधानियां (Precautions)

  • सर्वप्रथम जल नेति के लिए प्रयोग किए जा रहे पानी की क्वालिटी पर ध्यान देना आवश्यक है। पीने का स्वच्छ जल ही प्रयोग करना चाहिए।
  • जलनेति क्रिया से पहले नेति पोट को दस मिनट तक गर्म पानी में डालकर रखें। फिर उसे बाहर-भीतर से अच्छी प्रकार धोकर साफ कर लेना चाहिए।
  • जलनेति क्रिया अभ्यास से पहले अपने हाथों को साबुन से धोकर साफ कर लेना चाहिए 
  • जल नेति नाक आदि साफ करने के लिए एक हैंड टावल साथ में रखें।
  • जलनेति के लिए पानी अधिक गर्म न हो। हल्का गुनगुना पानी का ही प्रयोग करें।
  • पानी और नमक का अनुपात सही होना चाहिए क्योंकि बहुत अधिक अथवा बहुत कम नमक होने पर जलन एवं पीड़ा हो सकती है।
  • जल नेति खड़े होकर करें या बैठकर अपने सामने कोई खाली पोट रख लें ताकि पैरों पर छींट न लगें।
  • जलनेति के बाद नाक को सुखाने के लिए भस्त्रिका प्राणायाम किया जाना चाहिए। नाक का एक छिद्र बंद कर भस्त्रिका करें और दूसरे छिद्र से उसे दोहराएं और उसके बाद दोनों छिद्र खुले रखकर ऐसा करें।
  • नाक को सूखने के लिए अग्निसार क्रिया भी की जा सकती है।
  • नाक को बहुत जोर से नहीं पोछना चाहिए क्योंकि इससे पानी कानों में जा सकता है।
  • इस योग क्रिया को करते समय मुंह से ही सांस लेनी चाहिए।

याद रखिए (Keep in Mind) :

नेति पात्र की साफ-सफ़ाई पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। बैक्टीरिया फ्री करने के लिए नेति पात्र को गर्म पानी में  उबालें। जल नेति के लिए पीने का साफ पानी ही उपयोग में लें, टँकी आदि का दूषित जल नहीं अन्यथा यह  गम्भीर संक्रमण का कारण बन सकता है।

अन्तिम सलाह (Final Advice) :

इस क्रिया का अभ्यास करने से पहले योग प्रशिक्षक से प्रशिक्षण ले लेना चाहिए।  नेति क्रिया या योग से संबन्धित अन्य सलाह या  जिज्ञासा के लिए मेल भेजें ayushyamandiram@gmail.com

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