रीढ़ को लचीला बनाने के लिए सरल योगासन
आज के इस युग में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जिसने कमर के दर्द को अनुभव न किया हो। कमरदर्द कोई रोग नहीं है अपितु इसके होने का कारण हमारी अनियमित दिनचर्या व उठने, बैठने, चलने व काम करने के गलत तरीकों के कारण होता है। जिस प्रकार एक पेड़ का तना जितना सीधा होगा, वह पेड़ और उसकी शाखाएं उतनी ही विकसित होंगी। इसी प्रकार हमारे सम्पूर्ण शरीर का विकास हमारी रीढ़ के ऊपर निर्भर करता है। हमारे शरीर के समस्त अंगों का जुड़ाव रीढ़ से ही है, क्योंकि जितनी हमारी रीढ़ लचीली व सीधी रहेगी, तो उससे जुडे़ समस्त अंगों को रक्त का संचार व प्राणिक ऊर्जा का प्रवाह सही होगा। अतः हम अपनी रीढ़ की मांसपेशियों व कड़ियों को लचीला बनाएं रखकर स्वयं को पूर्ण स्वस्थ रख सकते हैं और यह केवल यौगिक व्यायामों से ही सम्भव है।
रीढ़ बुढ़ाने के संकेत
○कमर व पीठ दर्द
○कमर व गर्दन में अकड़न
○पैरों में दर्द व चलने में परेशानी
○पैर और बाजू में झनझनाहट व सुन्नता
○पैर व बाजुओं में कमजोरी
○चाल में अनियमितता
○बार-बार शरीर का ढ़ीला पड़ना
○कुछ क्रियाएं करने में परेशानी होना
○जैसे हाथ से लिख ना पाना
○पीठ की मुद्रा में अनियमितता
○रीढ़ के जोड़ों में दर्द।
कमरदर्द से पीड़ित व्यक्तियों के लिए विशिष्ट यौगिक व्यायाम
कमर दर्द कोई रोग नहीं है, अपितु अधिकतर कमरदर्द के मरीजों में केवल कमर की मांसपेशियाँ ही कमजोर होती हैं। जो अधिक बैठने, सोने व काम करने या लम्बे समय तक वाहन चलाने से या कमर में झटका लगने से हो जाता है। कमरदर्द के उपचार के दो तरीके ही हैं-
- कमर की मांसपेशियों व कड़ियों को यौगिक व्यायाम द्वारा शिथिल व सशक्त करना।
- अपनी दिनचर्या को नियमित व व्यवस्थित करना।
योग एवं प्राकृतिक चिकित्सक जयप्रकाशानन्द ने कमरदर्द के अनेक रोगियों पर गहन अध्ययन के बाद सफलता प्राप्त कर कमरदर्द से पीड़ित व्यक्तियों के लिए एक विशिष्ट यौगिक व्यायाम की श्रंखला तैयार की है, जिसका अभ्यास कुशल प्रशिक्षक के निर्देशन में करने से हानि की सम्भावना नहीं होती व पूर्ण लाभ प्राप्त होता है। इस श्रंखला में गदर्न का व्यायाम, कंधों का व्यायाम, कटि संचालन, अर्ध कटि चक्रासन, पाद संचालन, भू नमन आसन, कमर की क्रिया, सेतुबंधासन, पवनमुक्तासन, डोर्सल क्रिया, अर्ध शलभासन, भुजंगासन श्वसन, मार्जरी श्वसन, मकरासन, बाल श्यानासन शामिल हैं। आइए अभ्यास शुरु करते हैं-
1. गर्दन का व्यायाम (Neck Movement)
- सर्वप्रथम ध्यानात्मक या वज्रासन में सीधे बैठकर दाँतों को कसकर बन्द कर लीजिए।
- सिर को जितना हो सके बायीं ओर मोड़िए। ठोडी कंधे की सीध में आ जाए। दृष्टि बायीं ओर रहेगी। 2-3 सेकेण्ड इसी स्थिति में रहिए।
- सिर को सामने लाकर दाहिनी ओर मोड़िए।
- सिर को सामने लाकर यथाशक्ति पीछे मोड़िए। दृष्टि सामने या नाक के अगले भाग पर रहेगी।
- इसी प्रकार आगे की ओर सिर झुकाइए, यहाँ तक कि ठोडी छाती से लग जाए। दृष्टि भू्रमध्य में रहनी चाहिए।
- यह एक चक्र पूरा हुआ। इसी प्रकार तीन चक्रों का अभ्यास कीजिए।
- प्रत्येक क्रिया 2-3 सैकिण्ड तक करनी उचित है।
दूसरा अभ्यास
पहले कही हुई सारी प्रक्रिया श्वास लेते तथा छोड़ते हुए (पूरक-रेचक) सहित करनी है। ध्यान रहे मध्य (Center) में श्वास भरना है।
- पूरक करते हुए ग्रीवा को बायीं ओर घुमाइए। रेचक करते हुए सिर को सामने ले आइए।
- पूरक करते हुए, इसी प्रकार सिर को दाहिनी ओर घुमाइए और रेचक करते हुए सामने ले आइए।
- ऐसे ही पूरक से पीछे, रेचक से सामने सिर को घुमाइए।
- यह एक चक्र पूरा हुआ। ऐसे यथेच्छा चक्र कीजिए।
- खडे़ होकर हाथ पीछे कीजिए अथवा वज्रासन में बैठ जाइए। शरीर सीधा और स्थिर रहना चाहिए।
- मुँह बंद करके ग्रीवा को बांयी ओर से आगे, दाहिने, पीछे घुमाते हुए एक चक्र पूरा कीजिए। इसी प्रकार यथाशक्ति 20-30 चक्र कीजिए।
- अब दाहिनी ओर से ग्रीवा को घुमाइए। जितने चक्र बायीं ओर से किये हैं उतने ही दाहिनी ओर से लगाइए। केवल सिर और ग्रीवा ही अधिक से अधिक गति करें शेष शरीर स्थिर रहेगा।
2. कंधों का व्यायाम (Shoulder Rotation)
कंधों का व्यायाम |
3. कटि संचालन (Spine twisting)
कटि संचालन |
रीढ़ को लचीला बनाने में इस अभ्यास से मदद मिलती है। रीढ़ व कंधों का पूर्ण व्यायाम इससे हो जाता है। कड़ी (Disk) खिसक जाने की स्थिति में इसे नहीं करना है।
- इस अभ्यास को करने के लिए पैरों को जोड़ कर सीधे खड़े हो जाएँ।
- श्वास अंदर लेते हुए, हथेलियां एक दुसरे के सामने रखते हुए, हाथों को अपने सामने, जमीन के समानांतर करें। अपने हाथों और कन्धों की दूरी समान रखें।
- श्वास छोड़ते हुए, कमर दाहिनी ओर घुमाएं और बाएं कंधे से पीछे की ओर देखें। पैरों को एक ही स्थान पर रखे रहें, इससे कमर को पूरा घुमाव प्राप्त होगा। हथेलियों की दूरी समान बनायें रखिये। अपनी पीठ के नीचले हिस्से में खिंचाव महसूस करें।
- श्वास लेते हुए पुनः सामने की ओर घूम जाएँ। श्वास छोड़ते हुए इस आसन को बाएँ ओर घुमते हुए दोहराएँ। साँस लेते हुए पुनः सामने की ओर घूम जाएँ।
- इस आसन को कुछ समय तक दोनों तरफ करें और फिर श्वास छोड़ते हुए हाथों को नीचे लें आएँ।
- आसन करने की गति धीमी और एक समान हो। शरीर को झटके से न हिलाएँ। 10-12 बार दोहराएं।
4. अर्ध कटि चक्रासन (Ardh Katichakrasna)
5. पाद संचालन (Standing Leg Movement)
इस अभ्यास में श्वास भरते हुए पांव आगे उठाना व श्वास छोड़ते हुए वापस लाना है तथा उसी पांव को श्वास भरते हुए पीछे व श्वास छोड़ते हुए वापस लाना है। यह कमर के निचले हिस्से में दर्द, जंघा व नितम्ब के लिए भी लाभकारी है। यह क्रिया उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए भी लाभकारी है।
6. भूनमनासन (Bhu Namanasana)
कमर और रीढ़ के लिए एक बहुत उपयोगी आसन है। इस आसन को करने से लंबे समय तक बैठने या खड़े होने से आई थकावट दूर होती है। यह रीढ़ में खिंचाव कर कमर की मांसपेशियों को लचीला बनाता है। यह आँत के अंगों की मालिश करता है। गर्भवती महिलाओं, हर्निया, स्लिपड डिस्क, कमर में चोट या ऑपरेशन की स्थिति में इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- इसे करने के लिए दंडासन में बैठ जाएं।
- हाथों को जांघों पर टिकाएं।
- श्वास भरते हुए हाथों को पंजों के समानांतर उठाकर सीधा करें।
- श्वास छोड़ते हुए शरीर को थोड़ा पीछे ले जाएं और बाईं ओर घुमाएं तथा अपनी हथेलियों को अपने पीछे जमीन पर रखें व कोहनियों को झुकाते हुए माथे को जमीन की तरफ नीचे झुकाएं।
- ध्यान रहे दोनों पंजों से नितम्ब तक के भाग सीधा रहें (नितंब या कूल्हे जमीन से न उठें)।
- बाईं ओर से यह एक चक्र पूरा हुआ। अब दाईं ओर से इसी प्रकार दोहराएं।
7. लम्बर क्रिया (Lumber Stretch)
लम्बर- क्रिया |
इसमें दोनों पांव मोड़कर, हाथों को सिर के नीचे रखते हुए पांव एक तरफ व गर्दन दूसरी ओर मोड़कर कुछ देर रुकना है (श्वास-प्रश्वास सामान्य रहे)। अब इसी क्रिया को बदलकर दूसरी ओर से भी करना है। कमर (Lumber) के दर्दों के लिए बहुत लाभदायक है। 5-5 बार बदलकर दोनों तरफ से करना है।
8. सेतुबंधासन (Setu-bandh-asana)
सेतुबंधासन |
इसमें दोनों पांव मोड़कर एड़ी नितम्बों तक लाते हुए, हाथ जंघा के पास जमीन पर रख श्वास भरते हुए पेट सहित कमर को ऊपर उठाना है तथा श्वास छोड़ते हुए पुनः कमर जमीन पर लगा देना है। इसे 10-12 बार करना है।
9. डोर्सल क्रिया (Dorsal Stretch)
10. अर्ध शलभासन (Ardh Salabhasana)
अर्ध शलभासन |
11. भुजंग-श्वसन (Bhujangasana /Breathing)
सर्पासन |
- पेट के बल लेट जाएं।
- दोनों पैरों के अंगूठे व एडियां मिली रहें।
- हथेलियों को छाती की अगल-बगल रखें।
- सांस लेते हुए कोहनियों के सहारे सिर और छाती को ऊपर उठायें।
- (ध्यान गर्दन पर केन्द्रित करें) थोड़ा रुकने के बाद सांस छोड़ते हुए पहले वाली स्थिति में आ जाएं।