रक्तचाप की अनियमितता: शरीर में अंदरुनी रुप से पैदा होने वाली रोगों की घंटी

रक्तचाप की अनियमितता: शरीर में अंदरुनी रुप से पैदा होने वाली रोगों की घंटी




अनुक्रमणिका 

(toc)

 रक्तचाप की अनियमितता:   हायपरटेंसन अथवा उच्चरक्तचाप

आज के भौतिकवादी युग में हर मनुष्य शीघ्र अति शीघ्र आगे बढना चाहता है। वह किसी भी तरह इज्जत, नाम, शोहरत और ढेर सारा पैसा कमाना चाहता है। Success at any cost उसे पैसा और शौहरत तो देती है, परन्तु एक बीमारी भी उसे प्राय: तोहफे में मिल जाती है, और वह है रक्तचाप की अनियमितता। रक्तचाप उच्च हो या निम्न शरीर में अंदरुनी रुप से पैदा होने वाली रोगों की घंटी है। आज के तनावग्रस्त जीवन में हायपरटेंसन अथवा उच्चरक्तचाप सलो प्वाइजन की तरह अधिक  से अधिक लोगों को शिकार बना रहा है। आयुर्वेद में इसे शिरागत वात कहा है। रक्त वाहिनियों तथा धमनियों पर रक्त का अधिक दबाव पड़ना और कठोर हो जाना ही शिरागत वात है। यह रक्तसंचार की प्रक्रिया हृदय के विभिन्न कार्यक्लापों पर निर्भर करती है। तो आइए रक्तसंचार को समझने के लिए हम मौटेतौर पर हृदय की आंतरिक सरंचना व कार्य को समझने का प्रयास करते हैं। 

हृदय की आंतरिक सरंचना व कार्य

हाॅं! एक बात और विशेष रुप से समझ लो कि हृदय के बायीं ओर के निलय एवं आलिन्दों में शुद्ध आक्सीकृत रक्त (प्योर ऑक्सीजनेटिड) रहता है, जबकि हृदय के दायीं ओर के अलिन्द एवं निलय में अशुद्ध रक्त (डिऑक्सीजनेटिड) रहता है। एक मिनट में 60 से 90 बार धड़कने वाला हृदय हर धड़कन के साथ करीब 70 एम एल रक्त धमनियों में फेंकता है। इससे पहले भी धमनी में रक्तपूर्णरुप से भरा रहता है। धमनियों में हृदय द्वारा रक्त को पफैंकने से लचीली धमनियों  में दबाव पैदा होता है, और रक्त के दबाव से उनकी दीवारें फैल जाती हैं। यह धमनियों की संकुचनशीलता के कारण सम्भव हो सकता है। 

दूसरा परिणाम रक्त के कारण धमनियों में एक लहर पैदा होती है, जो प्रारम्भ में प्रबल होती है और धीरे-धीरे कोशिकाओं में  पहुंचने से पहले अदृश्य हो जाती है। धमनी जितनी कठोर होगी लहर उतनी ही तीव्र गति से चलेगी। जितनी संकुचनशीलता होगी, उतनी ही धीमी गति से चलेगी। 

यानि जब बांये निलय (वेनटरिकल) में संकुचन होता है तो शुद्ध रक्त संकुचन के दबाव से महाधमनी  से पूरे वेग से गुजरता है और हजारों मील की दूरी तय करता है। इस प्रकार शुद्ध रक्त शरीर के विभिन्न उत्तकों में पहुंचता है। इस समय रक्त का वेग पूरे जोरों पर होता है। इसे सिस्टोलिक स्टेज या सिस्टोलिक ब्लडप्रेशर कहलाता है। सामान्य व्यक्ति का सिस्टालिक यानि ऊपर का रक्तचाप 120 एम एम मर्करी होना चाहिए।  

उच्चरक्तचाप से पीड़ित के लिए पालन करने योग्य बातें 

  • रक्तचाप वृद्धि से बचने के लिए रोगी को सदा काम, क्रोध्, जोश, चिन्ता, व्याकुलता आदि मानसिक आवेगों से बचना चाहिए। क्योंकि मानसिक आवेशों से सिमपैथेटिक नाड़ियाँ विक्षुब्ध् होती हैं तथा धमनी संकोच प्रबलता से होता है। 
  • उच्च रक्तचाप से पीडित रोगी को अधिक  शारीरिक व मानसिक श्रम नहीं करना चाहिए। 
  • खुली हवा में प्रतिदिन भ्रमण करना, अल्पमात्रा में तथा भूख से कम भोजन करना हितकर रहता है। 
  • भोजन में प्रोटीन और नमक की मात्रा कम लेना हितकर रहता है। 
  • उच्च रक्तचाप रोग से पीडित रोगी को कम से कम 8 से 9 घण्टे की नींद लेनी चाहिए तथा दोपहर में भी भोजन के बाद एक घंटा पूर्ण विश्राम करना चाहिए।
  • चावल, दूध्, केला, सेब, अंगूर, संतरा आदि फलों के सेवन से सोडियम (नमक) की मात्रा कम की जा सकती है। 
  • गेहूं, अण्डे, मांस, डबल रोटी, सूखे मेवे, पत्ते वाली सब्जियाँ, गाजर आदि का प्रयोग यथासम्भव अल्पमात्रा में ही करना चाहिए क्योंकि इन सभी सोडियम अधिक मात्रा में पाया जाता है।
  • उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए केले का सेवन हितकर रहता है। पका केला खाने से बढा हुआ रक्तचाप कम हो जाता है। जहां तक मेरा अनुभव है एक सप्ताह तक नित्य दो केले खाने से रक्तचाप में 10 फीसदी तक कमी हो सकती है बशर्ते कि प्राकृतिक रुप से पका हुआ छितरीदार केला हो। 

उच्चरक्तचाप से पीड़ित के लिए अन्य हितकर  बातें 

  • मेथीदाना का बारीक पाउडर बना लें। 3 ग्राम मेथीदाना सुबह खाली पेट पानी के साथ सेवन करें। 
  • हमेशा दक्षिण दिशा की तरफ सिर करके ही सोएं। घर के (उत्तरी-पूर्वी) ईशान क्षेत्र को साफ-सुथरा रखें।
  • रात को सोने समय पगतलियों पर सरसों के तेल एवं पानी से मालिश करें।
  • पंचमुखी रुद्राक्ष की माला गले में इस प्रकार पहनें कि वह हृदय क्षेत्र को स्पर्श करती रहें।
  • भोजन करते समय प्याज हमेशा इस्तेमाल करें। प्याज में रक्तचाप को कम करने वाले विशेष रासायनिक तत्व होते हैं। प्याज का रस और शहद को बराबर मात्रा में सेवन करना भी उचित रहता है।
  • सोते समय रोगन बादाम की 3-3 बूंदें दोनों नथुनों में डालें।
  • सुबह नास्ता करने से 15 मिनट पहले 4 तुलसी की पत्तियाँ और 2 नीम की पतियां खाना रक्तचाप के रोगी के लिए अत्यंत उतम रहती हैं। इन्हें लुगदी बनाकर भी खा सकते हैं।

उच्चरक्तचाप में पथ्य

मलाई निकला गायका दूध्, दही, छाछ, सोयाबीन, मुंगफली या सरसों का तेल, चने के आटे की मिक्स रोटी, हरी सब्जियां, सलाद और मौसम के अनुसार ताजा फल।

उच्चरक्तचाप में अपथ्य

उच्चरक्तचाप में नमक, खटटी चीजें, पूडी-पराठे, केक,कचैरी, समोसे, मिठाई, घी, ब्रेड, मक्खन, बेकरी का सामान, चाय, काफी, पोलिश किए हुए चावल, मांस-मदिरा, धूम्रपान, बेंगन, कटहल, अरहर, उड़द, अरबी, भिण्डी, सीताफल, आइसक्रीम, लाल मिर्च, तेज मसाला, अचार इत्यादि।

उच्च रक्तचाप में योग

उच्च रक्तचाप में प्राणायाम एवं योग से तो अदभुत लाभ मिलता है। वास्तव में लगातार योग को जीवन का एक अंग बनाने वाले व्यक्ति का ब्लडप्रेशर सदा व्यवस्थित रहता है। 
  • योग हमेशा प्रसन्नचित मन से खुली हवा में करें।
  • योग सुबह खाली पेट या शाम को खाना खाने के 5 या 6 बाद करें। 
  • पहले 2 मिनट भस्त्रिाका करें। इससे शरीर को आवश्यकतानुसार शुद्ध वायु मिलेगी।
  • शरीर को थोड़ा गर्मी मिलने के बाद,
  • 5 मिनट अनुलोम-विलोम,
  • 5 मिनट कपालभाति, आराम से करें। ज्यादा तनाव में न रहें।
  • 5 मिनट का विराम दें। 

आसनों में  निम्न आसन करें 

  • मकरासन, शलभासन, पवनमुक्तासन, कटिउत्तानासन, मरकटासन, पश्चिमोत्तानासन, वीरासन,  शिशुआसन,   सेतुबंधासन,   जानुशिरासन, ताडासन करें।

  • अब 5 मिनट फिर आराम करें। 
  • उसके बाद 5-5 मिनट भ्रामरी और उदगीथ प्राणायाम करें।
  • अब उज्जाई प्राणायाम और फिर सिंहासन करने के बाद 5 मिनट के लिए श्वासन में लेट जाएं।
(alert-warning) 
सावधान:  हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप से संबंधित किसी तरह की परेशानी होने पर डॉक्टर से तत्काल सम्पर्क करें। 





 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

.

Below Post Ad